गीता  ज्ञान  का  आध्यात्मिक  रहस्य – कैसे जुड़ते है कर्मों के अच्छे बुरे खाते

  गीता  ज्ञान  का  आध्यात्मिक  रहस्य          
एक बार एक व्यक्त्ति हर रोज़ मछली पकड़ने  जाता  था ! जब  वो  मछली पकड़कर ले आता था तो एक  नौजवान  व्यक्त्ति  हमेशा भीख मांगने  के  लिए  खड़ा हो  जाता  था  ! ये  व्यक्त्ति सोचता था  कि चलो  इतनी मछली पकड़ी है , तो इसको  थोड़ा  दे देता  हूँ  !  वह भी अपना पेट भर लेगा ! 
एक  दिन आया  कि किसी  ने उसको कहा कि तू रोज़  उसको दे  रहा है और उसको आलसी बनाता  जा रहा  है ! क्यों  नहीं  उसको भी  मछली कैसी  पकड़ी  जाती  है ये सिखाया जाए ! तो  वह अपने आप , कम-से-कम  इतनी  मेहनत  करके , अपना पेट तो भरेगा !
आज की दुनिया में भी ऐसा हो गया है ! हमने  कई  बार  किसी  को  देकर  के सोचा , चलो मेरा काम हुआ , मेरे  को  थोड़ा  दान का पुण्य मिल गया ! इस तरह से हम देते जाते हैं ! लेकिन हम यह नहीं सोचते हैं कि सामने वाले पात्र को आलसी तो नहीं बना रहे हैं ? इस तरह से अगर आलसी बनाते जायेंगे , तो आगे चलकर उनके मन में   कई   प्रकार  की   विकृतियां  उत्पन्न   होगी  ! आलसी  दिमाग शैतान का घर बनता है ! इसलिए क्यों  नहीं उसको ऐसे  कर्म  में व्यस्त किया जाए !
व्यस्त करने से उसका मन कम-से-कम शैतान का घर तो नहीं बनेगा ! इस  प्रकार  उनको  जीवन  में अच्छे मार्ग  पर  आगे बढ़ने की प्रेरणा दे दी जाए ! इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं  हो सकता  है !  तो  ये पुण्य करो !
अगर ये करने का टाइम भी नहीं है तो दान का नहीं करना ही ठीक है ! नहीं तो आज हम कितनों  के  साथ  हमारी  भागीदारी हो जाती है ! उस  भागीदारी  में  कर्म  का  फल  की भोगना का समय  आता  है  तो  भोगना  भी  भागीदारी  में ही चुक्त्तू करना पड़ता है !
जब चुक्त्तू करने का समय आता है तो भी ऐसे  ही आता है !  मान लो कि हम कहीं ट्रेन  में  जा  रहे  हैं !  वहाँ  किसी  के बाजु में सीट खाली  है और  हम  जाकर  बैठ  गए  !  अचानक उसकी  बहस  किसी तीसरे व्यक्त्ति से छिड़ जाती है ! झगड़ा करने जैसी स्थिति हो जाती है ! हाथा- पाई होने  लगती  है !
हम  बड़ी अच्छी भावना के साथ जाते हैं कि भाई , झगड़ा  क्यों  कर  रहे हो ? शान्ति रखो न , शान्ति से बैठो न ! वो जो गुस्से का स्वरूप होता  है उसमें  तो वो  ल़डते  ही हैं  लेकिन उसके साथ-साथ  हमें भी पीट  देते हैं ! 
फिर  हम सोचते हैं कि हम तो भलाई करने गये थे , लोगों ने हमें  मार दिया ! अब  ये  मार  क्यों  खानी  पड़ी ? क्योंकि भागीदारी में जो एकाऊंट बना और चुक्त्तू करने का समय  आया , तो ये भी तो भागीदारी ही है ! उसको  जानते  भी  नहीं , पहचानते  भी नहीं ! जब भिखारी को दिया तो उसको जानते-पहचानते थोड़े ही थे !  लेकिन भागीदारी में जो भी एकाऊंट बना तो  चुक्त्तू  करने  के समय  भी  भागीदारी  में ही  चुक्त्तू करना पड़ता है !
उस वक्त्त कई बार कई लोग सोचते हैं कि हम तो निर्दोष हैं , हम इसमें कैसे आ गए ? हमें क्यों मारा गया ? निर्दोष कोई नहीं है ! कहीं न कहीं वो एकाऊंट  बना  हुआ  है !  इसलिए  जब  चुक्त्तू करने का समय आया तो वो चुकाना तो पड़ेगा ही ! तो हम अपने आप को निर्दोष कैसे कहेगे ?

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