क्यों बिगड़ जाते है काम, क्यों विपरीत लगती है परिस्थितियां?

आधयात्मिक चर्चा

 

 परिस्तिथिओं के बिगड़ने का आधार है स्व~स्तिथि

आज सारे संसार में सभी मनुष्यो की स्व~स्तिथि बिगड़ी हुई है।इसलिए संसार में परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।और परिस्तिथियाँ बिगड़ती जा रही हैं।मनुष्य का मन इतना निर्बल हो गया है कि उसे छोटी~छोटी बातें भी परेशान करती हैं।सम्बंधों में जहर घुलता जा रहा है।इसलिए सब के जीवन से सुख वा शान्ति समाप्त होती जा रही है।
व्यक्तिगत रूप में भी हम देख सकते है कि हमारे मन की स्तिथि यदि बिगड़ी हुई है,मन तनाव ग्रस्त है तो हमे अपने जीवन में समस्याएं ही समस्याएं नजर आती हैं।हमे यह संसार काँटों का जंगल प्रतीत होता है ।परन्तु यदि हमारा मन प्रसन्न है तो हमे अपना जीवन और संसार सुखमय प्रतीत होता है।
वास्तव में खेल सारा ही स्व~स्तिथि का है।किसी भी कर्म को करने से पूर्व यदि स्व~स्तिथि श्रेष्ठ है तो कर्म पर उसका प्रभाव भी positive दिखाई देगा।जिसके फलस्वरूप् स्तिथि भी positive बनेगी।इसलिए कभी भी परिस्तिथियों से घबराएं नही।सदैव याद रखें कि जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है उसके जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं।हमने ही ख़ुशी से बीज बोया है तो फसल को भी हमे ही ख़ुशी से स्वीकार करना है।

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