जब सफलता व्यक्ति की सोच पर निर्भर करती है तो स्वाभाविक है कि बडी सफलता के लिए सोच का बडा होना आवश्यक है। हमारे मस्तिष्क को छोटा सोचने की आदत पडी हुई है।
हमारी इस आदत के कारण ही हम अक्सर अपने आप को कम आंक कर, दूसरे लोगों के सामने प्रस्तुत करते है। यानि हमारे अंदर खुद को दीन-हीन देखने की कमी भरी रहती है।
खुद को सस्ते मैं बेचने की कमजोरी दूर कर लेने से दूसरों की नजर में अपनी वेल्यू बढाई जा सकती है। अपनी सोच को बडा करने के लिए हम बडी मानसिकता वाले सकारात्मक शब्दों व वाक्यों को बोलकर, दोहराकर, सोच को बडा कर सकते है।
एम एल ए. या एम पी. बनना अच्छी बात है परन्तु राज्य का माननीय राज्यपाल या मुख्यमंत्री तथा भारत देश का माननीय राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनना हमारी बडी सोच को दर्शाता है।
इसी प्रकार साधारण डॉक्टर, वकील या अन्य कोई भी बना जा सकता है, परन्तु विशेषज्ञ बनना हमारी बडी सोच को दर्शाता है।
याद रखिये किसी भी क्षेत्र का साधारण ज्ञान आपको साधारण लोगों की ही श्रेणी में बनाये रखता है मगर किसी एक क्षेत्र का भी विशिष्ठज्ञान आपको चुनिंदा लोगों की श्रेणी मैं लाकर खड़ा कर देता है।
जिस प्रकार दो सौ, पाँच सौ रुपए कमाने की सोच रखकर करोड रुपये नहीं कमाये जा सकते। करोड रुपये कमाने के लिए करोडों कमाने की सोच का होना जरूरी है। लेकिन शुरुआत छोटे से कर सकते हैं। उसी प्रकार अपने-अपने क्षेत्र के सर्वोच्चता और विशेषज्ञता हासिल करने के लिए बडी सोच का होना बहुत जरूरी है।
अमीर आदमी, अमीर क्यों है क्योंकि वह अमीर की तरह सोचता है गरीब आदमी, गरीब क्यों है, क्योंकि वह गरीब को तरह ही सोचता है। यदि अमीर आदमी, गरीब की तरह सोचने लग जायेगा तो वह भी गरीब बन जायेगा। इसके विपरीत यह भी सही है कि यदि गरीब आदमी अमीर की तरह सोचने लग जायेगा तो वह भी अमीर बन सकता है। ये सारा खेल ही सोच का है मेरे दोस्त।
कहते हैँ मजदूर पैसै से गरीब नहीं होता वह सोच से गरीब होता हैं। मगर एक सुन्दर ताजमहल बनाने वाला इंसान मेहनत, लगन और दिल से काम करने की बडी सोच के गुण को अपने मस्तिष्क में रखने वाला होता है। उसका यही गुण उसे मजदूर से कलाकार बना देता है।