ईशा योग फ़ाउंडेशन की आनंद लहर पत्रिका जीवन को सार्थक ढंग से जीने की राह प्रशस्त करती है, इस हिंदी पत्रिका का ऑनलाइन ब्लॉग स्वरूप अनेक मार्गदर्शक लेखों का संग्रह है ।
इसी पत्रिका के एक लेख में बच्चों की परवरिश से जुड़े विषय पर कुछ महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला गया है।
ये कुछ ऐसे नुस्खे है जो बच्चों को खुशहाल रखने में मददगार होते है:
- सभी बच्चों को एक तराजू में न तोलें : हर बच्चे के स्वभाव, संस्कार, क्षमताएं, रुचियाँ इत्यादि अलग अलग होती है, इसलिए सभी बच्चों के साथ उनकी ज़रूरतों के अनुसार अलग अलग ढंग से पेश आएं।
- बच्चों को अपनी सम्पत्ति न समझें : यह न समझें की बच्चा हमारी जमापूंजी है, भविष्य के लिए एक निवेश है। उसे अपनी खुशकिस्मती और ख़ुशी से उसका पालन पोषण कीजिए ।
- अपने विचार उसपर थोपें नहीं : जरूरी नहीं कि आपका बच्चा भी जीवन में वही आकांक्षाएं और सपने रखे जो आप रखते है, उसके कुछ अलग रास्ते भी हो सकते है । इसलिए से अपने जीवन में जिस दिशा में विकसित होना है, बढ़ना है, बढ़ने दें । उसके सपनों की उड़ान को रोकने का प्रयास न करें ।
- प्यार को प्यार के रूप में ही दें : यदि आप सोचते है की बच्चों की हर फरमाइश पूरा करना, उसे महंगे खिलौने इत्यादि देना और उन पर पैसे खर्च करना ही प्यार है तो हो सकता है आप ग़लतफ़हमी में है । ये सभी चीजें मिलकर भी सच्चे प्यार की भरपाई नहीं कर सकती । इसलिए बच्चों के साथ समय बिताने और उनको सच्चा प्यार देने का कोई और विकल्प नहीं हो सकता।
- ज़रूरतों को पूरा करें इच्छाओं को नहीं : ऐसा नहीं करें कि आप बच्चों की इच्छा अनुसार उनकी हर मांग पूरी करते जाएँ, बल्कि आप उन्हें वही दें जिनकी उनको आवश्यकता है । सिर्फ उनकी इच्छा अनुसार चलना बच्चे के लिए नुकसान दायक भी हो सकता है, जैसे कम उम्र में ज्यादा लैपटॉप, टेबलेट, टीवी के प्रयोग से बच्चे की आँखों को उम्र भर के लिए हानि हो सकती है ।
- बड़े करने की जल्दी सही नहीं : बच्चों को उनके स्वाभाविक बाल चंचलता से बड़ा होने दें , आप की किसी भी प्रकार की जल्दबाजी उचित नहीं होगी ।
- सिर्फ सिखाने वाले न बने, सीखें भी : यह न सोचें की मुझे ही बच्चे को सब कुछ सिखाना है, बच्चे भी ऐसी कई अनमोल सहज जीवन की कलाओं, नवीनताओं और जीवन का आनंद उठाने के गुणों से भरपूर होते है कि आप उनसे अपने जीवन को आनंददायक बनाने के अनेक गुर सीख सकते है।
- सहज माहौल दें : बच्चों को टीवी और अन्य माध्यम जो बाहर से अपने विचारधारा , मान्यताएं , बौद्धिकता इत्यादि थोपने के कारण होते है, उनसे संपर्क नपा-तुला ही रखें। इससे बच्चे को अपनी मौलिक बौद्धिक क्षमता के विकास का अवसर मिलेगा।
- स्वयं का भी ख्याल रखें : यह नहीं कि मैं चाहे दुखी रहूँ बच्चा खुश रहना चाहिए । अगर आपके मन, चेहरे से ख़ुशी नहीं छलकेगी तो आप कैसे आशा करते है कि बच्चा आपके साथ, आपके चेहरे को देखता हुआ खुश रहेगा । इसलिए बहुत आवश्यक है कि आप स्वयं भी खुश और आनंदपूर्वक रह बच्चों के लिए अच्छा माहौल बनायें ।
- उसके विचार और दृष्टिकोण को समझें और सम्मान करें : यदि आप चाहते है कि बच्चे आपको अपने मन कि हर बात बताए तो आप सबसे पहले उनके मन में इस बात को स्थापित करें कि आप उनके विचारों का सम्मान करते है और उसके दृष्टिकोण को समझते है।
- सम्मान मांगने की चीज नहीं : याद रखें सम्मान मांगने की चीज नहीं है, बच्चों से भी नहीं । इसे अर्जित किया जाता है, यह बात अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते समय भी याद रखें ।
- खुद को बेहतर बनायें : बच्चा आपकी बातों से नहीं आपके जीवन और व्यवहार से ज्यादा सीखता है, अगर आप चाहते है कि आपका बच्चा एक बेहतर और सफल इंसान बनने के लिए प्रयास करे तो आपको भी चाहिए कि बच्चा आपको भी उस दिशा में प्रयास करता देखता रहे ।
हालाँकि दस की बजाय बारह हो गए पर कोई बात नहीं, ज्यादा ही है ना, कम नहीं होने चाहिए 🙂
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