आप संपन बन पायें या न बन पाएँ इससे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। गरीबी में भी लोगों ने शानदार जिंदगी जी है और अमीर रहते हुए भी आदमी ने इतने कलह उत्पन्न किए हैं कि वे स्वयं तो मरे ही हैं, दूसरों को भी मार डाला है।
इसलिए सम्पन्नता की बात हम आपसे नहीं कहते। आपसे केवल निर्माण के बारे में बात करने वाला हूं। निर्माण से मेरा मतलब गुण, कर्म और स्वभाव से है। आप इन विशेषताओं को, आदमी की शालीनता को, आदतों को और चिंतन की शैलीयों बदलने के लिए जो कुछ कर सकते हैं वह सब कुछ कीजिए, लेकिन परिवार के लिए कुछ भी कीजिए।
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परिवार के पंचशीलों में श्रमशीलता का नाम आता है, सुव्यवस्था का नाम आता है, मितव्ययता का नाम आता है, सहकारिता और शालीनता का नाम आता है। ये सब बातें उसमें आती हैं। आप इन सब बातों का स्वयं निर्धारण कीजिए और घर वालों को घारण करवायें। यह व्यक्ति के निर्माण, चरित्र के निर्माण और चिंतन के निर्माण करने का एक शानदार तरीका है।
आप इसको किस तरीके से कार्यान्वित कर सकते हैं इसके बारे में एकांत में चिंतन और मनन जरूर करें। यह तीसरी वाली बात निर्माण वाली धारा है। चौथी वाली एक और धारा है जिसे हम मनन का दूसरा हिस्सा कह सकते हैं और उसका नाम है आत्मविकास।
आत्मविकास का क्या मतलब है। बताते हैं आत्मविकास का यह मतलब है कि अपने, आपके, अपने अहं के दायरे को बढा देना। लोगों का दायरा मनुष्य की सोच के दायरे से बहुत छोटा है। वे अपने शरीर को ही अपना दायरा मानते हैं। यह नहीं मानते कि हम समग्र समाज के एक घटक मात्र हैं।
आप ही बताए की रक्त के एक कण की क्या कीमत हो सकती है। इसी प्रकार रक्त के सभी कणों का समूह जब मिल जाता है तभी तो खून का संचार होता है। एक कण से क्या होता है। संयुक्त होने पर ही बात बनती है। इसलिए आप अपने दायरे को सीमित मत कीजिए आप संकीर्ण स्वार्थपरता से ऊँचे उठने की कोशिश कीजिए।
मैं के स्थान पर आप हम कहना सीखिए। आप मैं मैं करते रहेंगे, तो आप बकरी की तरह सीमित रह जाएँगे और इस के तरीके से एक ऐसे छोटे दायरे में घिरे रहेंगे, जिसमे आप और आपका मैं, बस इतने ही आदमी रह जाएँगे।
आपका समाज से अथवा भगवान से कोई संबंध ही नहीं रह जाएगा इसलिए अपने आपका दायरा विकसित कीजिए। हमने जो इसमें लिखा है हो सकता है आपको कम समझ आये लेकिन इसको एक दो बार जरूर पढें। सभी बातें एकस्तक में से कवर की गयी है। लेकिन पुस्तक का नाम याद नहीं हैं इसके लिए माफ करना।