योग शब्द का अर्थ ही है जुड़ना, लेकिन जब हम योग विद्या की बात करते है तो हम किस जोड़ की बात कर रहे होते है?
हमें योग की आवश्यकता क्यों है? क्या है जिससे हम कट से गए है और पुनः जुड़ना है?
आज जब हम सब साधनों और सुविधाओं के होने के बावजूद भी यदि एक खालीपन और अधूरापन महसूस करते है तो लगता
है कि कुछ तो है जिससे हम कट से गए है और हमारे भीतर का हर्ष और आनंद ख़त्म सा हो गया है|
सहज रूप से देखें तो एक बालक बहुत ही हल्का, प्रसन्न और आनंद की स्थिति में रहता है, एक ऐसी बेफिक्र स्थिति जिसका
अनुभव हम सबने अपने बचपन में कभी न कभी तो किया ही है|
लेकिन क्यों आज हम उस अनुभव के लिए तरस जाते है?
इसका कारण है की हमने जीवन की इस भाग दौड़ में खुद को ही भुला दिया है|
कब आखिरी बार हमने अपने मन में झांकने की कोशिश की ? कब आखिरी बार हमने अपने मन की उलझनों को सुलझाने का
प्रयास किया ? कब आखिरी बार हमने सिर्फ स्वयं के लिए समय निकला ?
मन में उठने वाले उद्वेगों का सामना करने की बजाय हमने उनसे ध्यान हटाने के ही तरीके खोजे | टीवी, इन्टरनेट,मनोरंजन और परिवार के अन्य सदस्यों में अपने मन को उलझाने का प्रबंध ही किया |
अपने अन्दर की बुराइयों जैसे क्रोध, लोभ, द्वेष इत्यादि को पहचान कर उनका उन्मूलन करने के बजाय हमने इन विकारों के
साथ ही जीना सीख लिया| अपने मन के किसी एक कोने में एक आदर्श जीवन को जीने की उत्कंठा से हमने हर बार मुंह ही मोड़ा |
लेकिन आज भीतर एक अहसास हमेशा होता है कि कुछ तो है जिससे हम कट गए है. कुछ तो है जो हमारी सहज ख़ुशी,
सहज आनंद, सहज प्रेम, सहज उमंग-उल्लास का कारण था, जिससे हम दूर हो गए है |
सब धर्म कहते है कि ईश्वर हमें अपने ही समान बनाता है – सुन्दर, प्रेममय, निश्चल, पवित्र, निर्मल, आनंदमय और दुनिया के हर
विकार से मुक्त, लेकिन इस दुनिया में आकर समय के साथ हम अपने उस मूल स्वरुप से दूर हो जाते है |
अपने मूल स्वरुप से दूर होने के कारण अपने आत्मा के मूल गुण जैसे आनंद, प्रेम, ख़ुशी, शक्ति, पवित्रता इत्यादि से भी दूर हो
जाते है, और इसके बाद हमें अपने भीतर दुःख और अधूरेपन का अहसास होने लगता है|
फिर हम चाहे कितनी भी भौतिक वस्तुओं, खाने पीने की चीजों और धन-दौलत से उस अधूरेपन को ख़त्म करने की कोशिश करें वो ख़त्म होता ही नहीं, क्यों की भौतिक वस्तुएं उसका कारण थी ही नहीं |
उस सम्पूर्णता और सहजता की प्राप्ति के अनुभव का एक ही रास्ता है खुद से फिर से जुड़ना, अपने सच्चे और मौलिक स्वरूप से जुड़ना और फिर खुदा जो की हम आत्माओं का परमपिता है, परमात्मा है, सदा निर्विकार है, सदा सम्पूर्ण है, सदा पवित्र है, सदा आनंद का सागर है… से जुड़कर पुनः अपनी मौलिक स्वरूप को हासिल करना |
इस योग यात्रा का हिस्सा बनने के लिए आप सभी सदर आमंत्रित है |
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