तीन प्रकार के भोजन बतलाये गये हैं !
सात्विक मनुष्यों का आहार क्या है ? सात्विक मनुष्य का आहार उन्हें आयु , बुद्धि बल , स्वास्थ्य , सुख , सात्विकता तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ! उनका भोजन भी आयु बढ़ाने वाला , बुद्धि बढ़ाने वाला , आंतरिक मनोबल शक्त्ति बढ़ाने वाला , स्वास्थ्य बढ़ाने वाला, सुख प्रदान करने वाला तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है !
राजसिक मनुष्यों का आहार कैसा होता है ? मनुष्य जैसा अन्न खाता है उसी का प्रभाव उसके मन के विचारों पर पड़ता है ! तीखे खट्टे , खारे , बहुत गर्म , चटपटे , रूखे , बहुकारक आहार दुःख और शोक तथा क्रोध उत्पन्न करने वाले होते हैं ! ये राजसिक आहार हैं !
तामसिक आहार किसको कहता हैं ? प्रहर भर से पड़ा हुआ अर्थात् रात का बासी अन्न स्वीकार करना ! सुबह को बचाके रखना और दूसरे दिन उसे स्वीकार करना ! प्रहर भर से पड़ा हुआ , नीरस ( जिसके अन्दर एक प्रकार की दुर्गंध आ गयी हो ) बासी है , अपवित्र है अर्थात् जानवरों को मारकर के उसका आहार , इसको कहा जाता है , तामसिक भोजन !
व्यक्त्ति जैसा भोजन खाता है , वैसी अपनी प्रकृति का निर्माण करता है ! इसलिए व्यक्त्ति की प्रकृति या सात्विक या राजसिक या तामसिक होती है या उसके साथ वो जिस प्रकृति को रचता है , जिस प्रकार के बच्चों को वह जन्म देता है उसका आधार उसका आहार होता है ! जैसा भोजन खाया है वैसी प्रकृति की रचना होगी ! फिर उस रचना से दुःखी हो जाते हैं और सोचते हैं कि भाई ऐसी रचना कहाँ से आ गयी ? इसलिए अगर अपनी प्रकृति को , अपनी रचना को अच्छा बनाना चाहते हो तो उसके लिए भोजन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है !
व्यक्त्ति जैसा भोजन खाता है , वैसी अपनी प्रकृति का निर्माण करता है ! इसलिए व्यक्त्ति की प्रकृति या सात्विक या राजसिक या तामसिक होती है या उसके साथ वो जिस प्रकृति को रचता है , जिस प्रकार के बच्चों को वह जन्म देता है उसका आधार उसका आहार होता है ! जैसा भोजन खाया है वैसी प्रकृति की रचना होगी ! फिर उस रचना से दुःखी हो जाते हैं और सोचते हैं कि भाई ऐसी रचना कहाँ से आ गयी ? इसलिए अगर अपनी प्रकृति को , अपनी रचना को अच्छा बनाना चाहते हो तो उसके लिए भोजन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है !
कई माता-पिता की यह शिकायत बनी रहती है अपने बच्चों के प्रति कि हमारी रचना ऐसी है ! किस तरह से उन्हें वश किया जाए , नियंत्रण में लाया जाये ! श्रीमदभगवद् गीता में , इसका उत्तर प्राप्त होता है ! उस रचना को कंट्रोल करने के लिए भी उसको वैसा भोजन प्रदान करना ज़रूरी है ताकि उसकी प्रकृति में भी परिवर्तन आ जाए !
परमात्मा सर्व ब्यापी नही है।शिव संकर अलग अलग है
।
ब्रम्हा बिष्नु संकर के भी रचइता शिव बाबा है।
ओम् शांति
जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन।